लखनऊ ! एनडी टी वी पर प्रसारण मंत्रालय द्वारा लगाई गयी रोक को लेकर मीडिया जगत में आक्रोश है कई मीडिया घराने सरकार के इस कदम को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताते हुए इसे आपातकाल की शुरूआत बता रहें है. मीडिया के लोगों का मानना है कि यदि सरकार के इरादों पर मीडिया सवाल उठायेंगी तो क्या सरकार द्वारा मीडिया को इस तरह प्रतिबंधित कर दिया जाएगा…?
इस बहस ने तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गए आपातकाल की यादें ताज़ा कर दी हैं, ‘आपातकाल’ भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना के रूप में देखा गया है अब से चालीस वर्ष पूर्व 25-26 जून1975 की रात से 21 मार्च 1977 तक देश में आपातकाल घोषित हुआ था उस समय राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी जिसे स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय माना गया है .बताया यह जाता है की इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा का चुनाव ही मुख्य वज़ह था, कमोवेश वही स्थित वर्तमान में यहाँ भी है.देश के कई राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उसमे देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश भी शामिल है कहा जाता है की देश की शीर्ष सत्ता का रास्ता इसी सूबे से होकर निकलता है ऐसे में केंद्र की सत्ता में बैठे लोग न केवल सरकारी मशीनरी को ही अपने तरीके से प्रयोग करने का कुचक्र रच रहे हैं बल्कि सत्ता की हनक में किये और कराये जा रहे कृत्यों पर सवाल उठा रहे मीडिया को भी रौब में लेने का प्रयास कर रहें हैं इसी कड़ी में आगामी 9 नवम्बर को एनडीटीवी के प्रसारण को रोक भी दिया गया है !
हाला कि एनडीटीवी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार के इस निर्णय पर संबैधानिक रास्ते क्या हो सकते हैं इसके मंथन में जुट गया है इधर देश के विभिन्न हिस्सों में मीडिया द्वारा सरकार के इस निर्णय का विरोध भी हो रहा है मीडिया के लोगों का मानना है की सवाल मीडिया द्वारा नहीं उठाये जायेंगें तो फिर कौन उठाएगा ?…अगर सवालों के बिना पर मीडिया पर शिकंजा कसा जाएगा तो आपात काल की यादें ताज़ा होना स्वाभाविक है हिंदी समाचार चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ को एक दिन के लिए ऑफ एयर करने के फैसले की राजधानी लखनऊ में भी विभिन्न पत्रकार संघठनो व पत्रकारों ने निंदा की है जनजागरण मीडिया मंच के प्रमुख रिजवान चंचल ने कहा की आपातकाल के बाद पहली बार ऐसा एखने को मिल रहा है की सरकार मीडिया की आवाज़ को रोकने का काम कर रही है यदि यह कहा जाये की नौ नवंबर लोकतंत्र के लिए काला दिन है तो गलत न होगा मीडिया मंच के सचिव आर के पाण्डेय ने एनडीटीवी के प्रसारण पर लगाये गए रोक के आदेश को तत्काल निरस्त किये जाने की मांग सरकार से की ,लोहिया नामा के संपादक नवेद शिकोह ने कहा की हिन्दुस्तानी मीडिया की आजादी को दौलत की जंजीरो मे बाँधकर कैद करने वाली नीतियों के खिलाफ पत्रकारों का गुस्सा उन पत्रकारों के खिलाफ ज्यादा मुखर हो गया है जो मोदी भक्ति मे मीडिया के खिलाफ केन्द्र सरकार के दमनकारी फैसलो पर खामोश है।
देशभर के पत्रकारों और मीडिया संगठनो मे एनडीटीवी पर एक दिन के लिये बैन को लेकर गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सबसे बड़े संगठन- एडिटर्स गिल्ड आफ इन्डिया, प्रेस क्लब आफ इन्डिया के अतिरिक्त देशभर के दर्जनों पत्रकार संगठन एनडीटीवी के समर्थन मे आकर केन्द्र सरकार के खिलाफ आन्दोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे है। वहीं इस मामले पर यूपी सहित देश के चंद पत्रकार संगठनों की खामोशी इन्हे कटघरे मे खड़ा कर रही है। इन संगठनो ने मीडिया को गुलामी की जंजीरो मे बाँधने वाली मोदी सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अब तक एक बयान तक भी नही दिया। यही नहीं पत्रकारों और पत्रकारिता की आजादी के हक की बातेँ करने वाले इस तरह के कई मोदीपरस्त पत्रकार संगठन एनडीटीवी पर बैन के तानाशाही कदम पर खामोशी इख्तियार किये हैं। इस खामोशी से ये शक/ आरोप और भी उभरने लगे ही कि बड़े मीडिया समूहों को ही नही संगठनों की दुकान चलाने वाले कथित पत्रकारों को भी मोदी समर्थन की सुपारी के टुकड़े दिये जाते हैं।
4 pm के संपादक संजय शर्मा ने भी सरकार के इस कदम को दमनकारी बताया है प्रियंका पत्रिका के सम्पाक राम प्रकाश वरमा ने कहा की अगर सरकार के इस फैसले का पत्रकार संगठनो ने विरोध करने में कोताही की तो आज एनडीटीवी के प्रसारण पर रोक लगी है कल दूसरे की बारी है यह ध्यान रहना चाहिए ! वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार हरि पाल सिंह ने भी सरकार के इस फैसले की कटु आलोचना की है, एडीटर्स गिल्ड ने भी कड़ी आलोचना करते हुए इस फैसले को प्रेस की आजादी का सीधा उल्लंघन करार देते हुए तत्काल इस आदेश को रद किये जाने की मांग की है।
ज्ञात हो की सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से गठित अंतर मंत्रालयी समिति ने जनवरी में वायुसेना के पठानकोट बेस पर आतंकी हमले के दौरान पाया की एनडीटीवी इंडिया ने अत्यंत महत्वपूर्ण और रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील जानकारी उजागर कर दी थी जिसके चलते सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नौ नवंबर एनडीटीवी इंडिया का प्रसारण बंद करने का आदेश दिया है इस तरह के आदेश से तो ऐसा लगता है कि जैसे सरकार ने खुद को मीडिया की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने व कवरेज से सहमत न होने पर मनमानी दंडात्मक कार्यवाही करने की सारी शक्ति अपने हांथों में ले ली है जबकि किसी भी गैरजिम्मेदार मीडिया कवरेज के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोई भी नागरिक और सरकार अदालत जाकर कानूनी मदद हासिल कर सकता है बिना न्यायिक हस्तक्षेप या परीक्षण के प्रतिबंध लागू करना आजादी और न्याय के मूलभूत सिद्धांत का उल्लंघन है । ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एसोसिएशन (बीईए) ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दी है आतंकी हमले की कवरेज को लेकर किसी टीवी चैनल के खिलाफ पहली बार ऐसा आदेश दिया गया है जब की सरकार की ओर से दिए गए कारण बताओ नोटिस के जवाब में एनडीटीवी ने स्पष्ट कहा है कि उसकी कवरेज संयमित थी और उसमें ऐसी कोई सूचना नहीं थी जो सार्वजनिक नहीं थी और जिसे बाकी मीडिया ने कवर न किया हो एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन का प्रतिबंध लगाने की विपक्षी दलों ने भी कड़ी निंदा की है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने तो सभी अखबारों और चैनलों को अपना विरोध दर्ज कराने के लिए उस दिन साहस दिखाने और प्रकाशन और प्रसारण नहीं करने का सुझाव दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इसकी कड़ी आलोचना की है,सपा के रज़त जयन्ती समारोह में हिस्सा लेने राजधानी पहुंचें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी सरकार के इस कदम को अलोकतांत्रिक बताया है , पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है, यह फैसला दिखाता है कि देश में आपातकाल जैसे हालात हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने फैसले की निंदा करते हुए इसे चौंकाने वाला और अभूतपूर्व करार दिया। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा है कि क्या इन्हीं अच्छे दिनों का वादा किया गया था बीजू जनता दल के नेता तथागत सतपथी ने कहा, अभिव्यक्ति की आजादी की मौत, लोकतंत्र की मौत है। खुद ओडिशा के दो प्रमुख समाचार पत्रों के संपादक सतपथी ने कहा, मुझे लगता है कि सत्ता में शामिल लोग बेहद उन्मादी हो गए हैं।