by – हरि शंकर व्यास:
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद ने प्रदेश कांग्रेस नेताओं की बैठक बुलाई। एजेंडे में बात नहीं थी लेकिन प्रदेश के पुराने नेता पठान, मुन्ना ने कर डाली। मतलब वरुण गांधी को पार्टी में लाओ तो बात बनेगी। बात शुरू गांधी परिवार की जनता में पकड़ याकि प्रियंका गांधी और वरुण गांधी के असर से हुई। इसी पर फिर आरपीएन सिंह ने कहा कि आपको ध्यान होना चाहिए कि आप भाजपा नेता वरुण गांधी की बात कर रहे हैं। इससे कांग्रेसी भड़के और अरुण कुमार सिंह मुन्ना ने कहा बताते हैं कि वरुण पहले संजय गांधी के बेटे हैं। इसके बाद संजय गांधी के मतलब की चर्चा होने लगी। नेताओं ने याद दिलाया कि यहां बैठे हुए लोगों में कौन-कौन संजय गांधी की बदौलत है। गनीमत थी जो गुलाम नबी से नहीं कहा गया कि आप भी तो संजय गांधी की बदौलत हैं।
लब्बोलुआब यह कि उत्तरप्रदेश कांग्रेस की बैठक में वरुण गांधी की जरूरत को ले कर चर्चा हुई है। कोई आश्चर्य नहीं कि आगे फिर यह पढ़ने को मिला है कि इस दफा संजय गांधी को कांग्रेस पार्टी ने औपचारिक तौर पर याद किया।
क्या इसका अर्थ यह माना जाए कि गांधी परिवार में कोई सहमति हो रही है? जवाब देना आसान नहीं है। मोटे तौर पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और वरुण गांधी याकि नई पीढ़ी में कुछ न कुछ पकता लगता है। इलाहाबाद की भाजपा कार्यकारिणी की बैठक के वक्त अपने पोस्टरों से वरुण गांधी को यह समझ आया है कि भाजपा में वे प्रोजेक्ट नहीं हो सकते हैं। उनकी महत्वकांक्षा उत्तरप्रदेश की कमान संभालना है। इस पर भाजपा और संघ की राय नहीं बन सकती। पिछले दिनों लखनऊ में संघ परिवार की भी एक बैठक हुई थी उसमें यह कहते हुए नेताओं को हड़काया गया कि आपको मौका मिला हुआ है। आप क्यों नहीं अपने आपको वरुण गांधी की तरह लोकप्रिय बनाते हैं?
जो हो, कैबिनेट की अगली फेरबदल के बाद वरुण गांधी का मामला समझ आएगा।