सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय सुनाते हुए कहा कि नाबालिग अपराधियों को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी स्पष्ट कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) का अर्थ ‘मूकदर्शक’ नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिए आदेश में कहा, देश में सभी जेजेबी को किशोर न्याय (बच्चे की देखभाल व संरक्षण) अधिनियम, 2015 में दिए प्रावधानों के ‘अक्षरश: भावना’ का हर हाल में पालन करना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए बने कानून का ‘कोई भी मजाक नहीं उड़ा सकता, कम से कम पुलिस तो ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकती।’
जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने यह बात अनाथालयों में बच्चों के कथित शोषण के मुद्दे पर चल रही सुनवाई के दौरान तब कही, जब ऐसी दो घटनाओं के साथ ही उत्तर प्रदेश व दिल्ली में बच्चों को कथित तौर पर पुलिस हिरासत में रखकर ‘टार्चर’ करने के कई आरोप हालिया दिनों में मीडिया के जरिये सामने आने की तरफ पीठ का ध्यान दिलाया गया।
पीठ ने कहा, किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों में पूरी तरह स्पष्ट किया गया है कि कथित तौर पर कानून से छेड़छाड़ करने वाले बच्चे को पुलिस हिरासत या जेल में नहीं रखा जाएगा। एक बच्चे को जेजेबी के सामने पेश किया जाते ही तत्काल जमानत दिए जाने का नियम है। पीठ ने कहा, यदि जमानत नहीं दी जाती है, तो भी बच्चे को जेल या पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता। उसे निगरानी गृह या सुरक्षित स्थान पर रखना होगा।
पीठ ने कहा, हम यह स्पष्ट करते हैं कि जेजेबी का गठन मूकदर्शक बने रहने और मामला अपने पास आने पर ही आदेश पारित करने के लिए नहीं किया गया है। पीठ ने आगे कहा कि जेजेबी के संज्ञान में यदि किसी बच्चे को जेल या पुलिस हिरासत में बंद करने की बात आती है, तो वह उस पर कदम उठा सकता है।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को भी इस आदेश की एक प्रति सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने का निर्देश दिया ताकि हर हाईकोर्ट के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को यह आदेश मिल सके। साथ ही यह भी आदेश दिया कि सभी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यह सुनिश्चित करें कि इस आदेश को सख्ती से लागू करने के लिए इसकी एक प्रति हर जिला स्तरीय जेजेबी को भी भेजी जाए।
यूपी-दिल्ली के बाल आयोगों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षक आयोग और दिल्ली बाल अधिकार सरंक्षण आयोग को नोटिस भी जारी किया। पीठ ने नोटिस में दोनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। साथ ही केंद्र सरकार व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के अंदर एक रिपोर्ट देने का आदेश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 6 मार्च को होगी।