ऋषि मार्कण्डेय ने महाभारत के जो कि एक महान महाकाव्य व् ज्ञान का भंडार है, वानपर्व अध्याय में लिखा है कि कलियुग का यह चरण इस बात का गवाह होगा जिसमें गुरु ही वेद बेच देंगे तथा अधिकतर उन पर विश्वास भी नहीं करेंगे। योग और तंत्र के पवित्र विज्ञानं को गलत तरीके से पेश किया जायेगा और सबसे बड़ी विडंबना तो यह होगी कि कोई भी इन गलतियों की आलोचना नहीं करेगा। वास्तव में, अभी यही हो रहा है। हर कोई योग की खोज कर रहा है किन्तु उसका वास्तविक ज्ञान किसी को भी नहीं है। इसी कारण अध्यात्म का व्यापार फल फूल रहा है तथा ज्ञान लुप्त हो रहा है। योग से सम्बंधित लेखों की इस श्रृंखला में मैं पाठक को योग सूत्रों पर आधारित सही योग का संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगा ताकि कम से कम किसी योग कोर्स में भाग लेने से पहले उसके पास एक सूचित विकल्प तो होगा।
योग,एक शक्ति का विषय है और उस शक्ति तक पहुँचने के लिए गुरु रुपी माध्यम की आवश्यकता होती है। इसलिए योग में पहला कदम रखने से पूर्व ‘गुरु’ बनाये जाते हैं। भगवान का दर्ज़ा होते हुए भी राम और कृष्ण ने ‘गुरु’ बनाये थे। गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्ज़ा दिया गया है … इसलिए नहीं के वह परब्रह्मा से बढ़कर हैं बल्कि वह आपके लिए भगवान से बढ़कर हैं क्योंकि आपको पराशक्ति से मिलाने का माध्यम तो वही हैं। गुरु न ही तो एक व्यापारी हैं और न ही एक उद्यमी, वह तो पाँच इन्द्रियों से भी परे हैं क्योंकि वह शारीरिक और भौतिक रूप से अपने लिए कोई भी इच्छा नहीं रखते। वह तो ज्ञान,निःस्वार्थ प्रेम और परम आनंद के दाता हैं। वह आपकी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं हैं, उनका उद्देश्य तो आपका आत्मिक उत्थान है। केवल भौतिक और शारीरिक समस्यायों के हल ढूंढने के लिए उनके पास जाना उचित नहीं है, वह समस्याएँ तो आपके अपने ही किसी नकारात्मक कर्मों के परिणाम हैं जो किसी भी सरल सेवा तथा दान पुण्य करने से ही दूर हो जाएँगी। गुरु के पास तभी जाएँ जब आप इस सृष्टि का सत्य जानना चाहते हैं, इस माया चक्र के परे जाना चाहते हैं , केवल वही विचार आपको आपके गुरु से मिला सकता है।अधिक जानकारी के लिए www.dhyanfoundation.com पर संपर्क कर सकते हैं।